राग तेलंग

Friday, June 3, 2016

उसने कहा














मैंने कहा–
पिंजरे का यह परिंदा कितना सुंदर है
इसे घर ले चलते हैं

उसने कहा-
अच्छा होगा अगर
पिंजरा खरीदकर यहीं के यहीं पंछी को उड़ा दें

मैंने कहा-
फिर एक कुत्ता पाल लेते हैं

उसने कहा-रहने दो,
गले में ज़ंजीर होना किसी के लिए भी अच्छा नहीं

मैंने कहा-
तो चलो कछुआ या मछलियां पाल लेते हैं

उसने कहा-
अभी समुंदर,नदी,तालाब सूखे नहीं हैं
तब तक उन्हें वहीं रहने दो

मैंने कहा-
तुम हर बात को काटती क्यों हो ?

उसने कहा-
ये दुनिया जैसी थी-है
उसे वैसी ही रहने दो !
अभी तुम्हारे बस का नहीं
नई दुनिया बसाना

हां !
यह ज़रूर है कि
गुलामी की दुनिया में रहते हुए
मुझे ज़ंजीरें काटना आ गया है |


कविता: राग तेलंग

चित्र : साभार गूगल 

उसने कहा












मैंने कहा–
पिंजरे का यह परिंदा कितना सुंदर है
इसे घर ले चलते हैं

उसने कहा-
अच्छा होगा अगर
पिंजरा खरीदकर यहीं के यहीं पंछी को उड़ा दें

मैंने कहा-
फिर एक कुत्ता पाल लेते हैं

उसने कहा-रहने दो,
गले में ज़ंजीर होना किसी के लिए भी अच्छा नहीं

मैंने कहा-
तो चलो कछुआ या मछलियां पाल लेते हैं 

उसने कहा-
अभी समुंदर,नदी,तालाब सूखे नहीं हैं
तब तक उन्हें वहीं रहने दो

मैंने कहा-
तुम हर बात को काटती क्यों हो ?

उसने कहा-
ये दुनिया जैसी थी-है
उसे वैसी ही रहने दो !
अभी तुम्हारे बस का नहीं 
नई दुनिया बसाना

हां !
यह ज़रूर है कि
गुलामी की दुनिया में रहते हुए
मुझे ज़ंजीरें काटना आ गया है |
  
कविता: राग तेलंग
चित्र : साभार गूगल 

Monday, May 9, 2016

अभी में रहना


 

अभी में रहना



आज अभी कहो !

कल की ही बात है
जब कहा था-
आज अभी कहो


तुम टाल गए 
यह कहकर-
अभी नहीं


आज यह मत कहना-
अभी नहीं कल


कल कभी नहीं आता
बस आता है याद में


कहो ! कहो !
अभी कहो


सारा कहना अभी में है

ये अभी हमेशा रहता है

आज जो भी है
अभी में है


तो चलो
आज कहो
अभी कहो |



कविता : राग तेलंग

चित्र साभार : गूगल 

Thursday, May 5, 2016

अपनी बुआ की याद में : विशेष कविता

*** This poem is dedicated to the fond memory of my beloved Aunt i.e. BUA,Late Smt.Vijaya Thakre,She passed away last year 0n 11th May 2015 at Bilaspur,C.G.India after she met with Cancer.Needless to say that she was one of my initial stage’s inspiration during the school days.The aura she possessed was beyond description despite having rich background or academic one.I opine that women are like farmers on the earth who are meant for cultivation of seeds and later on they just keep their credit set aside. I pay my sincere homage with gratitude to her memories and to a person’s vision which see the scenes beyond present & future. 
(अपनी बुआ यानी बेबी आत्या को याद करते हुए)
साइना नेहवाल के एक आत्मकथात्मक लेख में एक दिलचस्प मगर माकूल पंक्ति आती है,वह ऐसी है : " प्रेरणा आप तक किस रास्ते से पहुंचेगी कोई नहीं जानता |"
यह जिस संदर्भ में लिखना हो रहा है,उस शख्सियत को नमन करते हुए शुरु करता हूं.
वह मेरी बुआ ज़रूर थी मगर उसका अपीयरेंस हमेशा से दोस्ताना रहा,यह बहुत बाद में समझ आया कि वह मेरे साथ फ्रेंड की तरह थी.उसमें हर किसी का कौतुक करने का,प्रोत्साहित करने का ग़ज़ब का माद्दा था.बिल्कुल निरपेक्ष भाव के साथ.आज उसे याद करता हूं तो समझ पाता हूं कि ऐसे लोग ही समाज और देश में प्रतिभाओं को सींचने और पनपाने का काम करते हैं,बिल्कुल चुपचाप,यहां तक कि शायद बिना खुद के जाने.
मुझे याद पड़ता है मेरी पहली कविता दैनिक भास्कर में छपने पर उसने मुझे एक प्रशंसाओं-आशीर्वादों से भरी चिट्ठी भेजी थी,वे शब्द और अर्थ आज भी मेरी स्मृति में समाहित हैं.
आबिदा परवीन से एक बार पूछा गया कि आपके गुरु कौन हैं तो उन्होंने जवाब दिया-मेरे एक नहीं कई गुरु रहे हैं,हरेक से मैंने कुछ न कुछ सीखा है,मैं सबको नमन करती हूं.मैं यहां आबिदा परवीन के सुर से सुर मिलाना चाहता हूं.मेरी उस बुआ के सम्मान स्वरूप मेरी एक किताब के समर्पण पृष्ठ पर उसका नाम दर्ज है और मैं यह उसके रहते कर पाया,इसका गहरा संतोष भी है.
अब उसके दुनिया-ए-फानी में न रहने से समझ आता है कि समाज में ऐसे लोग हमेशा से कम ही होते हैं,उनके न रहने पर मालूम पड़ता है कि ऐसा एक शख्स कम पड़ जाने से सोसायटी का कितना बड़ा नुकसान हुआ है.क्योंकि आजकल ऐसे लोगों का रिक्त स्थान भरने वालों की कमी बहुत महसूस होती है.
कौतुक या प्रोत्साहन किसी भी कला के विकास की एक अनिवार्य ज़रूरत है.अप-संस्कृति का जो तांडव नृत्य आज हम अपने चारों तरफ देख रहे हैं,वह है ही इसीलिए कि ऐसी प्रेरक विभूतियां या तो गुम हैं या कलाकारों को उनकी निकटता हासिल नहीं है.मुझे उसका सान्निध्य मिला, यह मेरी खुशनसीबी है और उसने जिस बड़े उद्देश्य के नजरिये से मुझे इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया,उसका मैं आज भी निर्वाह कर रहा हूं.
आइए अब कविता पढ़ते है :
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कविता : राग तेलंग
एक आदमी चला जाता है
एक आदमी चला जाता है

चला गया आदमी अपने साथ
अपनी ज़मीन,अपना आसमान भी लेकर चला जाता है
और ले जाता है
अपने हिस्से का सूरज भी,चांद भी,बादल भी,हवा-पानी,धूप-चांदनी भी और
सारे के सारे मौसम भी
वे बागीचे भी जिनमें खिला करते थे सात सुरों से तैयार रंग-बिरंगे फूल
और हां ! उन फूलों की सुगंध के साथ ही विदा होता है वह चला गया आदमी

वे टिमटिमाते तारे भी आसमान से ओझल हो जाते हैं हमेशा के लिए
जो उसकी आंखों में झिलमिलाया करते थे
चले गए आदमी के साथ देखे गए कई सपने भी धुंधला जाते हैं

चले गए आदमी के ख़यालों में डूबतीं-उतरातीं कई स्मृतियां
हमेशा के लिए चली जाती हैं विस्मृतियों की खोह में जहां होता है घुप्प अंधेरा

चला गया आदमी
बुज़ुर्ग भी है,बच्चा भी है,जवान भी जैसे बहन,बेटा या बेटी भी,बहू भी,मां भी कोई भी
कोई भी हो सकता है वह जिसके चले जाने से साथ चले जाएं सारे के सारे स्वाद
और चली जाए और खाने की मनुहार,लोरी चली जाए,थपकियां चली जाएं,नींद चली जाए
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस जीवन से एक आदमी चला जाता है

एक आदमी के चले जाने से अंततः धरती की गोद सूनी हो जाती है
जिसके साथ ही खो जाती हैं एक के साथ उससे वाबस्ता कई मुस्कुराहटें
खाली हो जाता है आसमान का कुछ वो हिस्सा जिसके भीतर उछाला जाता था आंख के उस तारे को

कौन है जिसके कहने पर
एक आदमी ज़मीन-आसमान से
यूं ही बिना बताए ऐसे चला जाता है कि फिर कहीं नहीं दिखता ?
किसी भी दृश्य की जीवंतता को लेकर कहां चला जाता है आदमी ?

एक आदमी चला जाता है
तो एक पुल टूट जाता है
रेल की एक पटरी उखड़ जाती है
घड़ी का एक कांटा टूट जाता है
एक झूलता हुआ झूला थम जाता है

चले गए आदमी को याद करो तो
पानीदार बादल से उतरती एक बूंद ठहर जाती है आकर आंख में

चले गए आदमी के साथ हम भी कुछ-कुछ मर जाते हैं |

Saturday, April 30, 2016

रचनात्मकता अंतर्मन से ही उपजती है - राग तेलंग


समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि राग तेलंग से बातचीत

समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि राग तेलंग अपनी विलक्षण शैली और शिल्प की कविताओं के लिए जाने जाते हैं .उनकी कविताओं के अछूते विषय और ह्रदय में उतर जाने वाली भाषा से एक ऐसे संगीत-रस की निष्पत्ति होती है कि लगता ही नहीं यह शब्द की कविता है .ऐसी कविता का कवि जो अपने पाठक के भीतर शब्द का संगीत यूं प्रवाहित कराये कि उसके जादू से मुश्किल हो जाए मुक्त होना, अपनी काव्य प्रक्रिया के बारे में क्या सोचता है, किन चीजों-परिस्थितियों से गुज़रकर मुकम्मल होती है उसकी कविता ? ऐसे ही कुछ सवालों को लेकर उनसे बातचीत की है युवा आलोचक डा. भूपेन्द्र हरदेनिया ने. 


·         प्रश्न नं. 1 : आपके विचार से कला का संबंध कलाकार के जीवन से कितना और किस प्रकार का है ? क्या 
 वही कला महत्ता प्राप्त कर सकती है, जिसका संबंध कलाकार की जीवन यात्रा से होता है ?
उत्तर : बहुत गहरा,अंतर्मन से, क्योंकि कला अंतर्मन से ही उपजती है । जीवन से ही कला का उत्स होता है । कला जीवन की जीवंतता का प्रतिबिंब है । आपके इस प्रश्न के दूसरे भाग से मेरी सहमति है । कला और कलाकार का जीवन दोनों एक दूसरे के समानार्थी और पर्याय होना बहुत जरूरी है । जैसा हम सोचते-कहते हैं, वैसा ही हम होते हैं - की तरह । नकली जीवन जीकर असली कलाकार नहीं हुआ जा सकता । हर  काल के सारे बड़े कलाकार कला को वास्तविक रूप में पहले जीते थे फिर वो कला को अपने-अपने केनवास पर उतारते थे ।
·         प्रश्न नं. 2 क्या रचनाकार हर समय रचनात्मक रहता है या एक विशेष कलात्मक अनुभव के क्षण के 
उपरान्त वह सामान्य व्यक्ति जैसा हो जाता है ? आपका इस संबंध में क्या अनुभव है ?

उत्तर: गालिब कहते हैं कि बदलकर भेस हम फकीरों का गालिब तमाशा -ए-अहले करम देखते हैं ।  रचनाकार हर वक्त कलात्मक अनुभवों से सराबोर रहता है । मगर बाहरी दुनिया के लोगों के लिए उसे सामान्य व्यक्ति की तरह दिखाई देना होता है, इसीलिए वह सामान्य व्यक्ति की तरह रहता है । सामान्य दिखने की कोशिश में अक्सर वह असफल भी होता है । कलाकार यानी एक मौलिक कलाकार,समय के हर क्षण में कलाकार होता है । उसकी कला का प्रकटीकरण हर क्षण में हो जरूरी नहीं] परंतु चिंतन की, कल्पना की, अंतर्मन की प्रक्रिया मथनी की तरह कलाकार के भीतर चलती रहती है, लगातार बिना रूके, चेतन- अवचेतन स्थिति में ।
·         प्रश्न नं. 3 काव्य रचना प्रक्रिया की परिभाषा क्या होनी चाहिए ?

·         उत्तर: काव्य रचना प्रक्रिया अपरिभाषेय है । रचना प्रक्रिया  के बारे में कुछ भी कहना हर लेखक के लिए मुश्किल है इसीलिए रचना प्रक्रिया अपरिभाषेय है । चूंकि रचना-प्रक्रिया अनुभव के तारों पर चलती है और कविता फिनिश लाइन पर खत्म होती है, तब तक दौड़ते ही जाना है । उत्स का क्षण, स्पार्क की परिस्थितियां कब मौजूद होती हैं यह ठीक-ठीक रचनाकार को भी पता नहीं होता । आभास के क्षणों को अगर वह रूपांतरित कर ले तो ठीक अन्यथा रचनात्मकता लुप्त होने में देर भी नहीं लगती । विज्ञान की भाषा में कहें तो वह प्रेरण यानी इंडक्शन की प्रक्रिया से मिलती- जुलती प्रक्रिया है । लेकिन इतना तो तय है कि रचनात्मकता की परिस्थितियां रचनाकार के आसपास हमेशा बनी रहती हैं, वह रचना के लिए तैयार है तब भी और नहीं है तब भी । रचनाकार को उस परिस्थिति के साथ तादात्म्य बैठाना होता है, तब ही रचना संभव होती है । रचनात्मकता इसी जटिल  संयोजन से उपजती है और इसीलिए यह जटिलता अपरिभाषेय की श्रेणी में कही जा सकती है ।
·         प्रश्न नं. 4  : काव्य रचना में प्रेरणा का क्या योगदान है ?
·         उत्तर: स्मृतियों का यदि कुल मिलाकर एक चेहरा बनाया जाए, तो वह प्रेरणा का होगा, ऐसा मुझे लगता है । प्रेरणा उत्प्रेरक के काम भर की है बस । आगे का काम कलाकार के जीवनानुभव, कौशल और उसका अंदाज करता है । आपको यह जानना दिलचस्प लगेगा कि अक्सर कलाकार अपनी प्रेरणा का चयन खुद करते हैं । अपने आसपास के परिवेश से वह भी शायद लगातार बदलते हुए । एक लंबी यात्रा में एक ही प्रेरणा काम करे, जरूरी नहीं । यह हर निश्चित दूरी पर ईंधन बार-बार भरवाने जैसा लगता है ।

·         प्रश्न नं.5 काव्य सृजन में कल्पना का कितना योगदान होता है ?
·         उत्तरः सारी कल्पनाएं यथार्थ से उपजी हैं । कोई भी कल्पना निराधार नहीं । काल्पनिकता का सृजन में योगदान एक निश्चित अनुपात में ही है, अधिकतर श्रेय वास्तविकता/अनुभव/ जीवन का है । लेकिन कल्पना के बगैर यथार्थ का मजा भी नहीं है । यथार्थ सबसे पहले कल्पना में ही आकर बैठता है, वहीं से  उसकी यात्रा शुरू होती है । फोटो खींचने और पेंटिंग बनाने में जो फर्क है उस प्रक्रिया से रचना में कल्पना की जरूरत पर सोचा जा सकता है ।
·         प्रश्न नं. 6 सृजन के क्षणों में आपके मन की क्या गति होती है ? आप कैसी मनस्थिति में कविता लिखते हैं ?
·         उत्तर: जब सर्जना की उर्जा तरंगों से मैं स्पंदित होता हूँ , लिखता हॅूं । कविता दिल का मामला ज्यादा है, दिमाग का कम । लेकिन खुद को एक सचेतन स्थिति में रखते हुए,फिर लिखता हूँ । लिखते वक्त आपको फोकस्ड होना पड़ता है , आपके कंटेंट और काव्य दृष्टि के प्रति । लिखना मजाक नहीं है । लिखते हुए लिखे गए विषय- कथ्य की पीड़ा आपको  भी स्पंदित करती है, रूलाती है,तकलीफ देती है, अगर आंसू भी आ जाते हैं, कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं ।

·         प्रश्न नं. 7 सृजन के समय में चित्त की एकाग्रता या समाधि को आप कितना आवश्यक मानते हैं ?

·         उत्तर: बहुत ज्यादा । एक कविता को लगातार जितना समय चाहिए, देता हॅूं । टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं लिखता । एकाग्रता सबसे जरूरी औजार है सृजन के लिए ।

·         प्रश्न नं. 8 काव्य रचना प्रक्रिया में प्रतीक, बिम्ब, मिथक और फैण्टेसी का कितना और क्या-क्या योगदान है ?

·         उत्तर: प्रतीक, बिंब, मिथक जरूरी तत्व हैं फैंटेसी गैर-जरूरी ।फैंटेसी की जरूरत जिस साहित्य में होती है, वह एक खास मनःस्थिति वाले पाठक की आवश्यकता के मद्देनजर लिखी जाती है । दरअसल हमारे आसपास ही इतना कुछ जीवंत घट रहा है कि जीवन में फैंटेसी की जरूरत उतनी नहीं है । अक्सर फैंटेसी पलायनवादियों का रास्ता बनती है इसे नहीं भूलना चाहिए ।

·         प्रश्न नं. 9 कविता लिखना क्या एक आवेगपूर्ण प्रक्रिया है ?
·         उत्तर: बिल्कुल । एक स्थिति आती है कवि के जीवन में जब कविता का उपजना एक रिफ्लेक्स एक्शन  के तहत हो जाता है । एक आवेग से भरी क्रिया ।आवेग को बनाए रखना रचना संपन्न करने के लिए बहुत जरूरी है । लेखन कोई मैनेजमेंट का काम नहीं है । बिना आवेग के, गुस्से के, प्रेम के या किसी भी ऐसे जज़्बे से जो रचना की जरूरी मांग हो, लिखा नहीं जा सकता ।

·          प्रश्न नं. 10 कविता के सृजन के दौरान आपकी भाषा किस प्रकार के रचनात्मक तनाव से गुजरती है ?

·         उत्तर: भाषा को बहुत तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है । भाषा की तनी हुई रस्सी पर मन की उद्विग्नता का गीलापन रचनात्मकता की आंच में सूखता है । आपकी बोली-भाषा हर पंक्ति में परीक्षा के दौर से गुजरती है ।निर्भर करता है कि आप किस मिजाज़ के पाठकों से संबोधित हैं । आपके पाठकों की अपेक्षा होती ही है कि आप भाषा उसके मुताबिक न सिर्फ रचें बल्कि भाषा के रचनात्मक खेल भी दिखाएं । एक नई भाषा को जन्म देने के करीब की भाषा का खेल । साथ ही समाज में भाषा के नाम पर हो रहे खिलवाड़ के प्रति सचेत करते हुए आप एक ऐसी भाषा के करीब ले जाकर पाठक को खड़ा करें कि लगे वह जनभाषा की बात है ।

·          प्रश्न नं. 11 काव्य रचना में कवि व्यक्तित्व का कितना महत्व होता है ?


·         उत्तर: काव्य सृजन- प्रक्रिया में व्यक्तित्व का विशेष महत्व नहीं होता । व्यक्तित्व का क्या है ! लिखने के बाद रचना पाठक की संपत्ति हो जाती है । लेखक अगर लिखने के बाद ^मैं^ से मुक्त नहीं हुआ  तो लिखना संतुष्टि-मुक्ति के द्वार पर ले जाएगा, कहना बेमानी है ।

Friday, April 29, 2016

राग की कविताएं अब उत्कर्ष की कविताएं हैं : संतोष चौबे

.भोपाल,२८ अप्रैल || राग तेलंग समकालीन हिंदी कविता के उन विरले कवियों में से हैं जो अछूते विषयों को छूने का जोखिम उठाते हुए बेहद सरलता से चीज़ों और उनके जटिल समुच्चयों को हल करने का हुनर पाठक में प्रवेश कराते हैं.ये विचार सुपरिचित कथाकार,कवि और आलोचक संतोष चौबे ने बोधि प्रकाशन से प्रकाशित राग तेलंग के नए कविता संग्रह " मैं पानी बचाता हूं" के लोकार्पण अवसर पर कही. वरिष्ठ आलोचक रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि राग तेलंग की रचनाएं दृश्य के पीछे के तमाम अदृश्य प्रतिबिंबों और अदृश्य के स्पष्ट दृश्यों का प्रभावी और विश्वसनीय खाका तैयार करती हैं,वे हमारे समय के ऐसे कवि हैं जिनके सरोकार सीधे तौर पर समाजोन्मुख हैं. राज्य संसाधन केन्द्र के सभागार में वनमाली सृजन पीठ और मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मलेन के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में इस अवसर पर प्रतिलिपि डॉट कोम द्वारा प्रकाशित राग की कविताओं की दो ई बुक्स का भी लोकार्पण किया गया.आमंत्रित अतिथियों में बीएसएनएल के महाप्रबंधक संदीप सावरकर,पलाश सुरजन,स्मिता नागदेव,अनघा राग और कला समीक्षक विनय उपाध्याय सहित अनेक वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का सफल संचालन युवा आलोचक आनंद कृष्ण ने किया. कार्यक्रम में राज्य संसाधन केन्द्र के निदेशक संजय सिंह राठौर,संदीप श्रीवास्तव,अनुराग सीठा,इम्तियाज़ खान,अशोक सिंह,रितु वर्गीस,राजू वानखेड़े सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.



Sunday, April 24, 2016

एक मुहल्ले में हुआ करता था भरा-पूरा फूलों का बागीचा

कविता : राग तेलंग

एक मुहल्ले में हुआ करता था भरा-पूरा फूलों का बागीचा

जब हम बागीचों में नहीं होते थे
फूल तब भी  हमारे आसपास घरों-मुहल्लों में मौजूद थे
लगभग अपनी समूची महक के साथ पूरी मस्ती में झूमते-गाते 
मगर...मगर हमने कभी  गौर ही नहीं किया

शुरुआत  उस कामगार स्त्री से करते हैं जिसका नाम था फूलबाई
फूलबाई से सबके दिन की शुरुआत होती
और शाम तक भी फूल नाम ज़ुबां पर रहता किसी न किसी के 
उसके आने की प्रतीक्षा में रोज़ गाहे-बगाहे मन में गूंजा करता एक शब्द 'फूल'
एक थी कुमुद जो निचले तल के घर में रहा करती
जहां अपने-अपने कामों से निवृत्त हो अन्य फूल दोपहर की बैठकों में इकठ्ठा हुआ करतीं
कमल तो केंद्र बिंदु थी मुहल्ले के लिए सलाह-मशविरों के वक़्त
एक थी पुष्पा जो जब-तब किसी न किसी फूल का ज़िक्र छेड़ देने के लिए जानी जाती थी
एक सुमन हुआ करती थी जो अफसानों में जाकर महक रही थी अब भी
कुसुम के मुहल्ले में तो चंपा-चमेली और जूही की खुशबू की बड़ी कीर्ति थी
और एक थी निशिगंधा नाम की षोडशी जिसके चर्चे चहुं ओर थे
ठीक वैसे ही जैसे फैलती है सुवास हर सिम्त
और उसकी सखियाँ कुंदा,गुल,,रोज़ी,लिली के तो क्या कहने !


ऐसे कई महकते फूल आसपास थे
जिनके बारे में ज़रूरी हैं कविता में दो-चार वाक्य
मगर फिर कभी

मगर हाँ !
हर मुहल्ला 
निरापद भी नहीं था सब तरह से
वहां सिंह-शेर,रणजीत,गब्बर,गैंडा टाईप के माली भी हुआ करते
जिनको देखते ही लगता था कि फूल और फूल की खुशबू जैसी चीज़ें
उनके जीवन के शब्दकोष में नहीं ही होंगी,और ऐसा था भी  
और एक जिसका नाम वसंत जैसा कुछ था
वह फूलों के लिए चाहते हुए भी कुछ करने से मजबूर था
सदियों से किसी भी मुल्क में फूलों की खुशबुओं का यूँ ही व्यर्थ चले जाना
हिरोशिमा-नागासाकी जैसी त्रासदी से कम नहीं होता
आज दुनिया का नक्शा उठाया तो कई मुल्कों पर अलग-अलग रंग चढ़े देखे
रंगों से आया फूलों का ख़याल
फूलों से हिटलरिया मुच्छड़ टाईप के उन आकाओं का जो मुल्कों को हांक रहे थे
कि अचानक महसूस हुआ एटलस से आता खुशबू का झोंका

ऐसे में दिलचस्प है यह सोचना कि अब अगर एटम बम से उठे धुएं का ग़ुबार
दुनिया के नक्शे को ढंकेगा तो
उसका मुकाबला फूलों की खुशबुओं के झोंकों से ज़रूर होगा |