मैंने कहा–
पिंजरे का यह परिंदा कितना
सुंदर है
इसे घर ले चलते हैं
इसे घर ले चलते हैं
उसने कहा-
अच्छा होगा अगर
पिंजरा खरीदकर यहीं के यहीं
पंछी को उड़ा दें
मैंने कहा-
फिर एक कुत्ता पाल लेते हैं
उसने कहा-रहने दो,
गले में ज़ंजीर होना किसी के लिए
भी अच्छा नहीं
मैंने कहा-
तो चलो कछुआ या मछलियां पाल
लेते हैं
उसने कहा-
अभी समुंदर,नदी,तालाब सूखे नहीं हैं
तब तक उन्हें वहीं रहने दो
मैंने कहा-
तुम हर बात को काटती क्यों हो ?
उसने कहा-
ये दुनिया जैसी थी-है
उसे वैसी ही रहने दो !
अभी तुम्हारे बस का नहीं
नई दुनिया बसाना
हां !
यह ज़रूर है कि
गुलामी की दुनिया में रहते हुए
मुझे ज़ंजीरें काटना आ गया है |
कविता:
राग तेलंग
चित्र : साभार गूगल

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