विरोध की भाषा
एक दिन
बोली जाने वाली भाषा
खो जाएगी
जिस भाषा में सोचेंगे
उसमें कह नहीं सकेंगे
और कहेंगे भी तो पाएंगे
एक भाषा खो गई है
इस तरह
एक दिन
विरोध भी मुमकिन न होगा
सोचेंगे भी
तो कह नहीं सकेंगे
और कहेंगे भी
तो कोई समझेगा नहीं
पता भी न चलेगा
विरोध नाम की कोई चीज
हुआ करती थी दुनिया में ।
कविता: राग तेलंग

No comments:
Post a Comment