राग तेलंग

Saturday, May 24, 2014



पानी ने कहा

मिट्टी के घड़े ने प्यास से कहा
मेरे भीतर ठंडक है और तृप्ति भी
पानी से कहो-आ जाओ !
और पानी आ गया

नदी ने लहरों से कहा
मैं जा रही हूं समुद्र में मिठास घोलने
पानी से कहो-साथ आ जाओ !
और पानी आ गया

बारिश ने बादलों से कहा
मेरे भीतर धरती की सी इच्छाएं पनप रही हैं
पानी से कहो-आ जाओ !
और पानी आ गया

आंखों ने आंसुओं से कहा
मेरे भीतर ढेर सारी खुशियां हैं और दुख भी
पानी से कहो-आ जाओ !
और पानी आ गया

पानी ने आखिर में कहा-
देखो मैं सबके बुलावे पर आया
अब मैं ख़त्म हो रहा हूं धीरे-धीरे
मुझे बचाओ, मुझे सहेजो
पानी की पुकार पर कोई नहीं आया
और पानी चला गया ।

कविता: राग तेलंग

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