राग तेलंग

Thursday, May 5, 2016

अपनी बुआ की याद में : विशेष कविता

*** This poem is dedicated to the fond memory of my beloved Aunt i.e. BUA,Late Smt.Vijaya Thakre,She passed away last year 0n 11th May 2015 at Bilaspur,C.G.India after she met with Cancer.Needless to say that she was one of my initial stage’s inspiration during the school days.The aura she possessed was beyond description despite having rich background or academic one.I opine that women are like farmers on the earth who are meant for cultivation of seeds and later on they just keep their credit set aside. I pay my sincere homage with gratitude to her memories and to a person’s vision which see the scenes beyond present & future. 
(अपनी बुआ यानी बेबी आत्या को याद करते हुए)
साइना नेहवाल के एक आत्मकथात्मक लेख में एक दिलचस्प मगर माकूल पंक्ति आती है,वह ऐसी है : " प्रेरणा आप तक किस रास्ते से पहुंचेगी कोई नहीं जानता |"
यह जिस संदर्भ में लिखना हो रहा है,उस शख्सियत को नमन करते हुए शुरु करता हूं.
वह मेरी बुआ ज़रूर थी मगर उसका अपीयरेंस हमेशा से दोस्ताना रहा,यह बहुत बाद में समझ आया कि वह मेरे साथ फ्रेंड की तरह थी.उसमें हर किसी का कौतुक करने का,प्रोत्साहित करने का ग़ज़ब का माद्दा था.बिल्कुल निरपेक्ष भाव के साथ.आज उसे याद करता हूं तो समझ पाता हूं कि ऐसे लोग ही समाज और देश में प्रतिभाओं को सींचने और पनपाने का काम करते हैं,बिल्कुल चुपचाप,यहां तक कि शायद बिना खुद के जाने.
मुझे याद पड़ता है मेरी पहली कविता दैनिक भास्कर में छपने पर उसने मुझे एक प्रशंसाओं-आशीर्वादों से भरी चिट्ठी भेजी थी,वे शब्द और अर्थ आज भी मेरी स्मृति में समाहित हैं.
आबिदा परवीन से एक बार पूछा गया कि आपके गुरु कौन हैं तो उन्होंने जवाब दिया-मेरे एक नहीं कई गुरु रहे हैं,हरेक से मैंने कुछ न कुछ सीखा है,मैं सबको नमन करती हूं.मैं यहां आबिदा परवीन के सुर से सुर मिलाना चाहता हूं.मेरी उस बुआ के सम्मान स्वरूप मेरी एक किताब के समर्पण पृष्ठ पर उसका नाम दर्ज है और मैं यह उसके रहते कर पाया,इसका गहरा संतोष भी है.
अब उसके दुनिया-ए-फानी में न रहने से समझ आता है कि समाज में ऐसे लोग हमेशा से कम ही होते हैं,उनके न रहने पर मालूम पड़ता है कि ऐसा एक शख्स कम पड़ जाने से सोसायटी का कितना बड़ा नुकसान हुआ है.क्योंकि आजकल ऐसे लोगों का रिक्त स्थान भरने वालों की कमी बहुत महसूस होती है.
कौतुक या प्रोत्साहन किसी भी कला के विकास की एक अनिवार्य ज़रूरत है.अप-संस्कृति का जो तांडव नृत्य आज हम अपने चारों तरफ देख रहे हैं,वह है ही इसीलिए कि ऐसी प्रेरक विभूतियां या तो गुम हैं या कलाकारों को उनकी निकटता हासिल नहीं है.मुझे उसका सान्निध्य मिला, यह मेरी खुशनसीबी है और उसने जिस बड़े उद्देश्य के नजरिये से मुझे इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया,उसका मैं आज भी निर्वाह कर रहा हूं.
आइए अब कविता पढ़ते है :
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कविता : राग तेलंग
एक आदमी चला जाता है
एक आदमी चला जाता है

चला गया आदमी अपने साथ
अपनी ज़मीन,अपना आसमान भी लेकर चला जाता है
और ले जाता है
अपने हिस्से का सूरज भी,चांद भी,बादल भी,हवा-पानी,धूप-चांदनी भी और
सारे के सारे मौसम भी
वे बागीचे भी जिनमें खिला करते थे सात सुरों से तैयार रंग-बिरंगे फूल
और हां ! उन फूलों की सुगंध के साथ ही विदा होता है वह चला गया आदमी

वे टिमटिमाते तारे भी आसमान से ओझल हो जाते हैं हमेशा के लिए
जो उसकी आंखों में झिलमिलाया करते थे
चले गए आदमी के साथ देखे गए कई सपने भी धुंधला जाते हैं

चले गए आदमी के ख़यालों में डूबतीं-उतरातीं कई स्मृतियां
हमेशा के लिए चली जाती हैं विस्मृतियों की खोह में जहां होता है घुप्प अंधेरा

चला गया आदमी
बुज़ुर्ग भी है,बच्चा भी है,जवान भी जैसे बहन,बेटा या बेटी भी,बहू भी,मां भी कोई भी
कोई भी हो सकता है वह जिसके चले जाने से साथ चले जाएं सारे के सारे स्वाद
और चली जाए और खाने की मनुहार,लोरी चली जाए,थपकियां चली जाएं,नींद चली जाए
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस जीवन से एक आदमी चला जाता है

एक आदमी के चले जाने से अंततः धरती की गोद सूनी हो जाती है
जिसके साथ ही खो जाती हैं एक के साथ उससे वाबस्ता कई मुस्कुराहटें
खाली हो जाता है आसमान का कुछ वो हिस्सा जिसके भीतर उछाला जाता था आंख के उस तारे को

कौन है जिसके कहने पर
एक आदमी ज़मीन-आसमान से
यूं ही बिना बताए ऐसे चला जाता है कि फिर कहीं नहीं दिखता ?
किसी भी दृश्य की जीवंतता को लेकर कहां चला जाता है आदमी ?

एक आदमी चला जाता है
तो एक पुल टूट जाता है
रेल की एक पटरी उखड़ जाती है
घड़ी का एक कांटा टूट जाता है
एक झूलता हुआ झूला थम जाता है

चले गए आदमी को याद करो तो
पानीदार बादल से उतरती एक बूंद ठहर जाती है आकर आंख में

चले गए आदमी के साथ हम भी कुछ-कुछ मर जाते हैं |

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