गोपनीय
चीज़ों को छुपाने के स्थानों की रहस्यात्मकता
यह
अपने-आप में एक रहस्य है कि
जितनी
बार गोपनीय चीज़ों को रखा जाता है अलग-अलग जगहें बदल-बदलकर
सबकी
नज़रों से परे उतनी ही बार हमें खटका लगा रहता है
कहीं
किसी को पता न पड़ जाए और
हम
भी इतने मासूम कि बदलते चलते हैं उनके स्थान
नित
नए निरापद स्थानों की तलाश में
एक
छोटे से घर के ही भीतर
शक़-शुब्हे
से घिरे रातभर हर सुबह उठते ही टटोलते हैं
उन
रहस्यमय स्थानों पर चीज़ों को
जैसे
रात में मारी न गई हो सेंध घर के ही किसी अपने द्वारा
ये
कैसा रहस्य है गोपनीय चीज़ों के साथ कि
उनके
लिए घर तो घर पूरी पृथ्वी पर भी कोई छोटा सा भी स्थान नहीं सुरक्षित
जो
सिर्फ हमारी और उसकी जानकारी में हो जिसके लिए बनी है वह गोपनीय चीज़
दिल
की धुकधुुकी बढ़ जाती है जब बातचीत में आता है
गोपनीय
चीज़ को रखे जाने के पड़ोस के स्थान का नाम और
लगता
है बातचीत में ही न पहुंच जाए बात करने वाला उस स्थान तक और
उसी
समय हम तय कर लेते हैं कि फिर बदल दिया जाए वह रहस्यमय स्थान
जितनी
जल्दी हो सके
व्यग्रता
और संशय से भरी एक दुनिया हम रच लेते हैं अपने लिए
जब
भी रखते हैं कहीं किसी ख़ास जगह पर वह गोपनीय चीज़ जिसका पता सिर्फ हमें ही है ऐसा
हम सोचते हैं
वे
चीज़ें आकार में अक्सर सूक्ष्म होती हैं मगर वे हमारी यादों के ग्लोब पर छाई होती
हैं
और
अकेले में फेरते हुए उन पर हाथ हम दुलारते हैं अपनी उन भावनाओं को
जिनसे
वे चीज़ें जुड़ी हुई होती हैं
यह
एक अनसुलझा रहस्य है कि गोपनीय चीज़ों के भीतर का गुरुत्वाकर्षण
क्यों
ऐसा होता है कि हम चाहते हैं वे बनी हैं सिर्फ हमारे ही लिए और
उन्हें
किसी के साथ बांटना कभी भी संभव नहीं
होगी
वह चीज़
कोई
एक बहुत पुराना ख़त जीर्ण-शीर्ण हालत में
या
कान के ऐसे बुंदे जिनकी चमक धुंधला गई हो
या
कोई एक हाथ घड़ी जिसमें ठहरा हुआ दिखाई देता हो वह सुवर्ण समय
या
निब वाला कोई एक पेन जिसका चलन अब बंद हो गया हो
या
कोई एक सफेद रुमाल
जिस
पर रंगीन रेशमी धागे से उकेरा गया हो सहेजने वाले का नाम
जो
तब्दील हो गया हो अब ब्लैक एंड व्हाइट छाते में
या
कोई एक लाल डायरी जिसमें लिखे गए हों किसी के सबसे पसंदीदा शेर
या
ऐसा कुछ जिसकी कीमत आंकना संभव ही न हो
या
ऐसी तमाम दुर्लभ चीज़ों में से कोई एक वह चीज़
जिसे
बना दिया हो हमने गोपनीय और सर्वथा निजी
जिसे
महफूज़ रखने के लिए बन गए हों हम मुहाफिज़
तलाशते
हुए कोई एक छोटा सा स्थान
जिसकी
रहस्यात्मकता के चलते बदलनी पड़ीं जगहें कई बार ।
कविता:
राग तेलंग

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