राग तेलंग

Wednesday, May 21, 2014

कविता:मराठी औरतें

मराठी औरतें

अभी भी
वैसी की वैसी ही तैयार होती हैं मराठी औरतें
जैसी हम अपनी मां को देखा किए
अपनी बुआओं-मौसियों के साथ शादियों-उत्सवों के दरमियां
बातें करतीं हुईं लावणी की
मोगरे की वेणियां पहने बाकायदा नथ के साथ
जैसे सितारे उतरते हैं चमकते-चमकते
सपनीली रातों में पृथ्वी की नींदों के वक़्त

इन मराठी औरतों ने पहले पढ़ाई की
फिर औरों को पढ़ाया-लिखाया, सिलाई-बुनाई की साथ-साथ पशुओं की देखभाल भी
कइयों की जचकी करवाई भरी बारिशों में अंधियारे समय में लालटेन की रोशनी में और
सलामत वापस लाईं उम्मीद से रहीं आईं औरतों को धरती पर
ऐसे कई किस्से थे जिन्हें बताते
टपकता था पसीना इन मराठी औरतों के माथे पर

इन मराठी औरतों के नाम कुछ भी हो सकते हैं आनंदी बाई,मनोरमाबाई
,उमादेवी,मालती,निर्मला,सुमन,अरुंधती या कुछ भी-कुच्छ भी
यह भी जो होंडा स्कूटर पर चली जा रही है
यह भी जो मारूति चला रही है
और वह भी जो आकाश में फाइटर प्लेन पर है
और वह भी तो जो हुसेन की पेंटिंग में गजगामिनी बने है

अब आज की कढ़ी इतनी स्वादिष्ट हो आई है
तो ज़रूर कुछ न कुछ बात है
और यह तथ्य भी काबिले गौर है कि
अभी भी वैसी की वैसी ही तैयार होती हैं
ये मराठी औरतें ।

कविता: राग तेलंग

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