· गुडबाय दोस्त.. वेलकम भाई
जिन लोगों ने फिल्म बर्फी देखी होगी वे यह भलीभांति महसूस कर सकते हैं कि अगर ईश्वर कुछ कम देता है तो उससे अधिक देता भी है ताकि कमतर कहे जाने वाले लोग भीड़ में अलग पहचाने जा सकें । जी टीवी पर जी सिने स्टार की खोज कार्यक्रम में अंतिम दौर में स्थान बना चुके विशिष्ट कलाकार कार्तिक व्यास वैसे हैं तो इलाहाबाद के लेकिन उनका एक सूत्र भोपाल से जुड़ता है, जिसकी चर्चा इस संस्मरणात्मक आलेख में लेखक ने की है । इस मार्मिक आलेख के लेखक राग तेलंग प्रतिष्ठित कवि हैं और साक्षात बर्फी के रुप में चर्चित कार्तिक व्यास के पारिवारिक मित्र भी हैं ।
बहुत सारी चीजें अपने समय पर घटित होती
हैं। जिनका घटित होना तय होता है और वे अनचाहे हो जाती हैं। इन दृश्यों को धैर्य
की आंखों से, वह भी भारी मन से देखना पड़ता है, आने वाले दूसरे दृश्य के लिए बात पिछले दशहरे की है।
शायद मैंने सडक़ दुर्घटना में किसी उदीयमान सितारे का अस्त होना, इस तरह तो देखा ही न था। वह बच्चा जिसकी कोंपले अभी
फूटना ही शुरू हुई थीं, रफ्तार के
वैचारिक प्रदूषण के चक्रव्यूह में फंसकर मोटर साइकिल पर सवार रात्रि में एक
कालरूपी भैंस से टकराकर अपनी जान गंवा बैठा था। रफ्तार की संस्कृति आत्मरक्षा के
विचार का भी एक मौका नहीं देती, बल्कि उस विचार
को अपने आसपास फटकने भी नहीं देती । दूसरों का असमय चले जाना भले ही हमें ऐसा
विचार देता हो कि हमारा समय लंबा करने का हमारे पास मौका है, लेकिन कुल मिलाकर यह एक स्वार्थी विचार है। उस दुर्घटना
के बाद अगले तीन दिन हर पल मुझे सबक मिलते रहे। वह छात्र एक राष्ट्रीय
प्रौद्योगिकी संस्थान का छात्र था, परिवार में एक
मूक- बधिर छोटा भाई और मां- बाप थे। एक बहन की शादी हो चुकी थी। सामान्य
मध्यवर्गीय परिवार। मेरे घर वह जब भी आता तो बातचीत में यह एहसास साझा करता कि
उसके ऊपर परिवार के तीन सदस्यों की महती जिम्मेदारी है। जब उसने मोटर साइकिल खरीदी
ही थी,
बहुत खुश होकर घर पर दिखाने आया था। किसे पता था कि यही
बाइक काल की सवारी हो जाएगी।
इंसान को बनाने वाला भी अजब- गजब किस्म
का एक माली है। कुछ फूल उसके कदमों में अपने आप आ गिरते हैं तो कुछ अधखिली कलियों
को वह जाने क्या सोचकर तोड़ लेता है। उस बच्चे की मुस्कुराहट में कमाल का आकर्षण&तत्व था, सबको बांध लेने
का हुनर। यह मैंने तब देखा जब उसके सहपाठी दुर्घटना के बाद अस्पताल में ऐसे एकत्र
हो गए जैसे स्कूल के दिनों में पढ़ी हुई वह कहानी बैगपाइपर ऑफ हैम्लिन’। एक जादू के तहत
एक केन्द्र बिन्दु के गिर्द, अभी- अभी पर
निकल आए परिंदों का एक जत्था। जीवन का आकर्षण&तत्व मृत्यु तक बांधे रखता है जीवन को ! शायद मृत्यु के
बाद भी !
तभी तो लगभग एक साल बाद उस नवांकुर की स्मृति में यह सब
कुछ मुझसे खुद-ब-खुद लिखाता जा रहा है। अलग- अलग शहरों से पढऩे आए हुए बच्चे अपने-
अपने परिवारों से सिर्फ बातचीत के माध्यम से परिचित हो पाते हैं। लेकिन अस्पताल के
बाहर उस गुजर चुके दोस्त के परिवार से पहली बार रूबरू होने में मुझे क्या किसी को
भी अजीब लगता। यह परिचय जिसमें आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, वह सबकी स्मृति में चिरस्थायी होते हुए हौले- हौले घुल
रहा था।
उसके छोटे भाई कार्तिक की पहली
प्रतिक्रिया का मैं साक्षी रहा था। हठात दोनों हाथ चेहरे पर रखकर वह
किंकर्तव्यविमूढ़ कुर्सी पर जा बैठा था। बिजली के शॉक से जाने कितना भारी धक्का था, मैं कह नहीं सकता।
वक़्त गुजरा, एक दिन मेरा बेटा जो दिवंगत युवा का अभिन्न मित्र भी था, एक ऐसी टी-शर्ट पहनकर आया जिस पर उस बैगपाइपर&नायक की तस्वीर थी। उसने बताया और कई बच्चों ने ऐसी ही
टी-शर्ट पहन रखी है। कपड़े पहने ही नहीं जाते, कुछ कपड़े हम अपनी आत्मा को भी ओढ़ाते हैं, ऐसा ही एक कपड़ा मैंने भी देखा उस दिन !
फिर एक दिन उसके छोटे भाई कार्तिक को
टेलीविजन के कार्यक्रम में देखा। मालूम हुआ उस अगाध प्रतिभा के धनी बच्चे ने कई
सामान्य बच्चों के मुकाबले अपनी विशिष्टता के बोध का लोहा मनवाया। टीवी पर उसके
मां- बाप भी दिखे, उस बच्चे के बारे में दर्शकों को परिचय
देते। अंतिम राउण्ड तक उस प्रतियोगी कार्यक्रम में वह छाया रहा। मैंने अपने बेटे
को दूसरे शहर से फोन किया तो कहते-कहते निकल गया&हां! अभी-अभी रितेश का प्रोग्राम देखा....नहीं! कार्तिक
का! ऐसा ही पत्नी के साथ हुआ....’ संभव है ऐसा ही
कई और जगहों पर हुआ हो। टी वी पर कार्तिक का जो दृश्य मुझे याद रहा उसमें वह बीच
में चल रहा था,
ऊंचा- पूरा, और उसके दोनों
हाथों से मां- बाप के कंधों को थामे हुआ था। कैंपस के दिन हैं, अभी रितेश होता तो परिवार का जिम्मा उसके कंधों पर होता।
मगर एक डोर छूटती है तो एक दूसरी अदृश्य डोर भी होती है, जो थाम लेती है। दुर्घटना के एक साल बाद दूसरी अदृश्य
डोर का दृश्य देखकर किसके आंसू भला न निकल पड़ेंगे। स्क्रीन पर संगीत के साथ आगे
की ओर बढ़ते कार्तिक के कदमों को लेखक का सलाम। गुडबाय रितेश... वेलकम कार्तिक।
& -राग तेलंग


2 comments:
kafi achha likha ritesh really miss u yaar
Are uncle aman kaha aajkal
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