राग तेलंग

Tuesday, March 29, 2016

पानी का हक़ कौन अदा करेगा ?

कविता- राग तेलंग

पानी का हक़ कौन अदा करेगा ?


न नए पेड़ लगाए
न मिट्टी की कद्र की
न हवा को मैली होने से बचा सके
धूप का अनादर किया
पानी को तो फिर सूखना ही था
चाहे आंख का हो या
हुआ करे ज़मीन का

ऐसी चीज़ों से
पट गया वातावरण
जो अंत तक घुली नहीं राख बनकर
मगर बस दिखती रहीं सामने पीठ पर लदी
कबाड़ के पहाड़ की तरह

पानी पर सबका एक-सा हक़ है
अगर जताता है बेचने वाला
तो जिसे प्यास लग आई है
उसे अपने हिस्से के पानी पर हक़ जताने का पूरा हक़ है
वह भी सबसे पहले

पानी पर सब हक़ जताएं ज़रूर
मगर आज सबसे बड़ा सवाल है
पानी का हक़ अदा कौन करेगा ?
पानी के व्यापारी या
तमाम निर्दोष प्यासे !

इस सवाल का जवाब
कौन देगा ?
पानी का हक़ अदा
कौन करेगा ?

कविता- राग तेलंग

प्लास्टिक की कुर्सियां


कोई चाहे मंच पर बैठा हो या फिर मंच के सामने
हर कोई रहता है हरदम एक दहशत में कि
जाने कब-कौन गिर पड़े प्लास्टिक की कुर्सी पर से
कोई भरोसा नहीं

प्लास्टिक की कुर्सियों का कोई भरोसा नहीं
नई राजनीति के दौर की तरह
नई अर्थनीति की तरह
नई पड़ोस नीति की तरह
नई प्रेम शैली की तरह
गारंटी की जगह वारंटी वाली  नई चीजों की तरह
कोई भरोसा नहीं

प्लास्टिक की बैठक-व्यवस्था में
जो भी घट रहा है सब नकली है

बेहतर विकल्प के अभाव में मजबूरी में खरीदी गईं  इन कुर्सियों पर
मंच के लोगों को छोड़कर
बाकी सब मजबूरी में बैठे हैं और हर पल डर रहे हैं
यह सोचते हुए कि  सुकून से बैठने के लिए चुनी गईं
प्लास्टिक की इन कुर्सियों का कोई भरोसा नहीं

आज के दौर में
भरोसा उठ जाने के मुहावरे से जुड़ता है
कुर्सियों का नाम

इन प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठो तो
कभी-कभी लगता है कि हमारी मजबूरी का
दूर आगे तक
कोई विकल्प नहीं

प्लास्टिक की कुर्सी से
उपजा डर और मजबूरी
अब हमारी संस्कृति का
एक हिस्सा बन गए हैं.

कविता- राग तेलंग

एक सप्ताह की दाढ़ी


एक दिन आप देर से जागते हैं और
बिना दाढ़ी बनाए काम पर चले जाते हैं

उस दिन तो कोई कुछ नहीं कहता
मगर लगातार दूसरे और तीसरे दिन भी ऐसा ही होता है
चौथे दिन समय पर उठकर
आप जब आईने के पास जाते हैं
देखते हैं कि  आपका एक हाथ दाढ़ी पर हाथ फेर रहा है
जैसे कह रहा हो कि  तुम दाढ़ी में अच्छे लगते हो

आईने से सहमति जताकर आप काम पर चले जाते हैं
वहां आपकी बढ़ी हुई दाढ़ी देखकर
कुछ कहने भर के लिए लोग कह देते हैं- आज अच्छे लग रहे हो
सुनकर आप खुश होते हैं
आपको लगता है ऐसा दाढ़ी की वजह से है
मन ही मन आप आईने को धन्यवाद देते हैं

पांचवें और छठे दिन आप
आईने के सामने से गुज़र जाते हैं दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए

सातवें दिन
आप पत्नी के साथ फिल्म देखने जाते हैं
वहां हीरो को दाढ़ी में देखकर वह कह उठती है-
ये हीरो बिल्कुल तुम्हारे जैसा है

अगले सप्ताह के पहले दिन
आप जब  सड़क से गुज़र रहे होते हैं अपने आप में खोए हुए
कि दूर कहीं कोई परिचित आपको इंगित करते हुए
किसी से कह रहा होता है-वो जो दाढ़ी वाला जा रहा है ना !

मतलब दोस्तो !
एक सप्ताह में
आदमी की पहचान
बदल सकती है
बशर्ते जागने में देर हो जाए.

कविता- राग तेलंग

चम्मच


चम्मच एक ग़ज़ब की संज्ञा है
चम्मच जिसका काम है खाने में मदद करना
यह मदद किसी भी तरह के खाने के लिए हो सकती है

चम्मच होना
आदमी की परनिर्भरता का नाम है

आम तौर पर चम्मच शब्द
जब किसी के लिए संबोधन की तरह इस्तेमाल होता है
तो यह अपने आप में प्रमाणपत्र होता है कि उस शख़्स ने
अपने असली नाम की विश्वसनीयता खो दी है

चम्मचों के कोई सिद्धांत नहीं होते
सिवाय एक के कि जो मालिक बोले वो ही सही
न खाता न बही

चम्मच
अतिरेक की हद तक  जा पहुंचने में माहिर होते हैं
उनका बस चले तो
एडमंड हिलेरी का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए
शिखर पर जाकर मालिक को कंधे पर भी बैठा लें

जिसकी चमचागिरी करते हैं वे उसका बयान
कुछ यूं प्रस्तुत करते हैं कि  जैसे हो वह एक अतिमानव
और उसके मुकाबले आप तो क्या
कोई भी कुछ नहीं

जिस तरह एक दिन सब कुछ गुज़र जाता है
उसी तरह एक दिन
चमचों के मालिक भी गुज़र जाते हैं
और इसके बाद चमचे भी
अपने आप आत्महत्या करके अपनी दिशा बदल लेते हैं

कहना ना होगा
चमचों की यात्रा अनवरत जारी रहती है.

कविता- राग तेलंग

आखेटकों के बीच अभिमन्यु


मैं जिस लाईन में लगा हूं
पाता हूं
आगे-पीछे से घेर लिया गया हूं

मैं हिंदी के बारे में
हिंदी में
सोचता हूं तो पाता हूं
पहले विदेशियों से घिरी थी
अब विदेशी दारूबाजों से
घिर गई है मेरी भाषा

चारों तरफ मौजूद
मेरी भाषा के
शब्द गुम हो जाने के
ख़तरों के बीच
पाता हूं
ख़ुद को अकेला

जैसे ही
मेरी भाषा का
आरक्षण काउंटर पर
नंबर आता है
पाता हूं
हत्यारों का आखिरी शिकार
मैं ही था.

परिचय

राग तेलंग

जन्म:  28 अप्रैल 1963, शहपुरा, जिला डिंडोरी, म.प्र.

कविता संग्रह : शब्द गुम हो जाने के ख़तरे, मिट््टी में नमी की तरह
,बाज़ार से बेदख़ल , कहीं किसी जगह  कई चेहरों की एक आवाज़, ,
कविता ही आदमी को  बचाएगी़, अंतर्यात्रा , मैं पानी बचाता हूँ
             
निबंध संग्रह :   समय की बात

सम्मान : वागीश्वरी पुरस्कार, रज़ा पुरस्कार, दिव्य अलंकरण तथा
बीएसएनएल द्वारा विशिष्ट संचार सेवा पदक से विभूषित
संप्रति: महामंत्री मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन

ई मेल : raagtelang@gmail.com

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